जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
Whosoever provides incense, prasad and performs arti to Lord Shiva, with enjoy and devotion, enjoys substance contentment and spiritual bliss in this entire world and hereafter ascends to your abode of Lord Shiva. The poet prays that Lord Shiva eradicated the struggling of all and grants them Everlasting bliss.
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
नमो Shiv chaisa नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
पूजन shiv chalisa lyricsl रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥ लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।